मेरा और मेरे ईश्वर का जन्म एक साथ हुआ था।
हम घरौन्दे बनाते थे,
रेत में हम सुरंग बनाते थे।
वह मुझे धर्म बताता है,
उसकी बात मानता हूँ,
कभी कभी नहीं मानता हूँ।
भीड़ भरे इलाक़े में वह मेरी तावीज़ में सो जाता है,
पर अकेले में मुझे सम्भाल कर घर ले आता है।
मैं सोता हूँ,
रात भर वह जगता है।
उसके भरोसे ही मैं अब तक टिका हूँ, जीवन में तन कर खड़ा हूँ।
3 comments:
बढ़िया है.. अब दर्शन और अध्यात्म छापो!
:)
Soch raha hoon us taveez ke andar kitne kamre honge!
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