Friday, September 5, 2014

महादेव




जैसे से जैसे सूरज निकलता है,

नीला होता जाता है आसमान। 
जैसे ध्यान से जग रहे हों महादेव। 
धीरे धीरे राख झाड़उठ खड़ा होता है एक नील पुरुष। 
और नीली देह धूप में चमकने-तपने लगती है भरपूर। 
शाम होते ही फिर से ध्यान में लीन हो जाते हैं महादेव। 
नीला और गहरा .... और गहरा हो जाता है। 
हो जाती है रात।

20.06.2010
यह कविता समालोचन पर भी पोस्ट हुई है।

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