एक बार मैंने बाबा रामदेव को 'आजतक' के कार्यक्रम 'सीधी बात' में बात करते सुना था। उन्होंने बताया कि जब वे दुबई गये थे योग शिविर लगाने, तो वहाँ उन्होंने लोगों से ॐ का उच्चार नहीं करवाया था, क्यों कि वहाँ लोग मुसलमान थे। ऐसा ही एक बार मेरे साथ तब हुआ था जब मैं लखनऊ के भारतेन्दु नाट्य अकादमी में पढ़ता था और वहाँ कुछ दिनों के लिए अस्थायी तौर पर आये एक योग गुरु ने मुझसे कहा था कि "आप ॐ की जगह अल्लाहोअकबर भी बोल सकते हैं, नमाज़ भी एक तरह का योग ही है आदि आदि........ ।" मैं यहाँ एक बात रेखांकित करना चाहता हूँ कि भारतेन्दु नाट्य अकादमी में तोष कुमार चतुर्वेदी हमारे एक ऐसे योग गुरु थे जिन्होंने ऐसी बात बिल्कुल नहीं की, कभी नहीं की। उपर जिस योग गुरु का मैंने ज़िक्र किया है वे तोष कुमार के छुट्टी पर जाने की वजह से कुछ दिनों के लिए आये थे।
बहरहाल मुझे उस वक़्त ऐसी बातों से बड़ी खीझ होती थी कि ख़्वाहम्ख़ाह मुझे एक अलग नज़र से देखा जा रहा है। पर आज एक बात समझ में आती है कि ऐसे लोगों में अपने धर्म, अपने विचार, अपने मत को लेकर विश्वास का घोर अभाव है। इस सिलसिले में मैं रसूल पुकुट्टी का अभिनन्दन करता हूँ जिसने अकादमी पुरस्कार (ऑस्कर एवार्ड) के मंच से ॐ का उच्चार किया, बिना किसी हिचक के।
नियति मुम्बई ले आई मुझे। मुम्बई में डॉक्टर चन्द्रप्रकाश द्विवेदी के साथ 'उपनिषद गंगा' नाम का टीवी धारावाहिक लिखना शुरु किया तो काफ़ी वेदांत पढ़ा। पाया कि बहुत सारी ऐसी चीज़ें हैं जिन्हें धर्म से जोड़ कर उसकी उपयोगिता सीमित कर दी गई।
अभय जी (अभय तिवारी) ने प्रेरित किया कि जो पढ़ा है उसे लोगों के साथ बाँटू। तो सोचा कि रूहानियत, दर्शन, चिंतन आदि के लिए 'चैतन्य' उपयुक्त होगा। तो शुरुआत ॐ से कर रहा हूँ। उस ॐ से जो न हिन्दू है न मुसलमान।
ॐ एक एक-अक्षरीय शब्द है। जिसका अर्थ है ईश्वर, जो सबका पालनहार और रक्षक है।
इसकी भाषागत संरचना है - अ + उ + म् = ॐअ और उ के योग से ओ बनता है। यह ध्वनि गले और होंठ के तालमेल से निकलती है। अंत में म् की ध्वनि से यह ॐ (ओम्) बन जाता है।
'अ' समूचे वस्तु जगत के अनुभव के लिए प्रयुक्त होता है। यानी अनुभव करने वाला, जिस वस्तु का अनुभव किया गया, और अनुभव, ये सभी ‘ध्वनि अ’ के अंतर्गत आते हैं।असल में जब व्यक्ति जाग्रत होता है तो वह जाने - अंजाने स्थूल शरीर और स्थूल संसार के प्रति जागरूक रहता है। व्यक्ति भौतिक संसार के अनुभव के प्रति भी जागरूक रहता है। उसी दौरान व्यक्ति अपने 'स्वयं' के प्रति भी जागरूक होता है जो अनुभव करने वाला है।
'उ' विचार जगत को परिलक्षित करता है। जो भौतिक संसार से बिल्कुल भिन्न अनुभव होता है। जब कोई व्यक्ति विचार करता है, सपने देखता है, या कल्पना करता है, तो वह व्यक्ति विचार जगत को अनुभव करता है। क्योंकि ध्वनि 'उ' का अर्थ है, विचार जगत, उस विचार जगत की वस्तु, और उसका अनुभव।
'म्' व्यक्ति की गहरी निद्रावस्था के अनुभव को परिलक्षित करता है, जो अव्यक्त अवस्था है। 'म्' का अर्थ है, सृष्टि के पहले जो कुछ था और समाप्ति के बाद जो कुछ होगा।
अतः, सोने वाला और सोने का अनुभव, सपना देखने वाला और सपने का अनुभव, और जगने वाला और जगने का अनुभव, ये तीनों मिलकर बनते हैं ‘सबकुछ’। ये तीनों एक साथ 'ॐ' को अभिव्यक्त करते हैं।
चूंकि ॐ पूर्ण है, इसलिए व्यापक अर्थ में ॐ का अर्थ ईश्वर है।
कोई व्यक्ति निरंतर ॐ का उच्चार करता है तो उसके बीच ख़ामोशी आती है, जिसे अमात्रा कहते हैं। यह जागरुकता, चेतना (जो तीनों जगत, तीनों अनुभव करने वालों और तीन अनुभव की अवस्था का आधार है) को परिलक्षित करता है। यानी ॐ वह सब अभिव्यक्त करता है जो कुछ अस्तित्व में है और जो समूचे अस्तित्व का मूल है।
भाषा से इतर भी ॐ का अर्थ है।यह सम्पूर्ण जगत एक दिखता है, पर वास्तव में इसके अनेक रूप हैं। ये सब एक वस्तु की तरह दिखता है और उसी समय यह कई वस्तुओ का संयोग भी है। जैसे स्थूल शरीर एक ओर ‘एक’ है पर इसके अंग विभिन्न हैं। हर एक अंग की अनेक कोशिकाएँ हैं। हर एक रूप में कई कई रूप हैं जिसके अनुरूप उनके नाम हैं।
कोई भी नाम रूप ईश्वर से अलग नहीं हैं। अब अगर कोई इन नाम रूपों के आधार पर ईश्वर को नाम देना चाहे, तो वह क्या देगा ? उसे कोई एक नाम चुनना होगा जो सभी नाम-रूप के लिए प्रयोग किया जा सके। कटोरा का अर्थ कटोरा ही होता है, कुर्सी नहीं होता, न ही मेज़, न ही पेड़, न चटाई। पर केवल ईश्वर ही वह है जो अकेले कटोरा भी है, कुर्सी भी है, मेज़ भी, पेड़ भी, चटाई भी है। वह सब कुछ है, हर शब्द और हर अक्षर है। तो अगर किसी को ईश्वर का नाम लेना हो, तो उसे शब्दकोश के सभी पन्ने पलटने होंगे। और केवल इतना ही पर्याप्त नहीं है। व्यक्ति को दुनिया की सभी भाषाओं और बोलियों के शब्द रटने होंगे। और अभी तो दुनिया में बहुत कुछ ऐसा भी है जिसे जानना अभी बाकी है, जब उनकी जानकारी आ जाएगी तब उनके नाम रखे जाएंगे, वे नाम भी ईश्वर के लिए प्रयोग करना होगा। तो भाषा के स्तर पर ईश्वर को नाम देना, जो अकेले ही समस्त नाम और रूप है, बहुत मुश्किल काम है।सभी नाम, और कुछ नहीं केवल शब्द हैं। सभी शब्द और कुछ नहीं केवल अक्षर हैं। सभी अक्षर और कुछ नहीं केवल ध्वनि हैं। अक्षर और वर्णमालाएँ सभी भाषाओं में भिन्न हैं। इसलिए ईश्वर के नाम के लिए व्यक्ति को अक्षर के परे जाना होगा। जहाँ सभी भाषाओं की पहचान समाप्त हो जाए।
अक्षर के परे एक नाम केवल कुछ ध्वनियों का समूह है। इसको ऐसे समझना चाहिए कि जो व्यक्ति हमारी भाषा नहीं समझता है उसके लिए नाम या शब्द केवल ध्वनि है।
इस संदर्भ में एक और बात महत्वपूर्ण है। किसी भी भाषा में व्यक्ति अगर मुँह खोलता है तो ‘अ’ ध्वनि निकलती है और मुँह बन्द करता है तो ‘म्’ । पूरी दुनिया की भाषा की ध्वनियाँ इसीलिए ‘अ’ और ‘म्’ के बीच ही आती हैं चाहे वह स्वर हों अथवा व्यंजन। इसलिए ‘अ’ और ‘म्’ के बीच, ‘अ’ के उच्चारण के बाद जब होंठ को ‘उ’ बोलने को गोल खोलते हैं, तो वह ‘ओ’ बन जाता है। इन्हीं तीन ध्वनियों का समायोजन है ॐ। जो सभी ध्वनियों को अभिव्यक्त करता है। इसीलिए ॐ ईश्वर का सबसे उचित नाम है। व्यक्ति ने यदि ॐ कह दिया यानी उसने संसार की सभी ध्वनियों का उच्चारण कर लिया।
हरि ॐ।
11 comments:
Thanks Farid for starting to write this. Good writers should write. Isi bahane hum bhi kuch seekh lenge. Waiting for your next note.
बधाई फरीद जी ...........
लेख में जटिलता नहीं है, काफी सुलझा और सम्प्रेषण में सुलभ.
शब्द और भाषा को धर्म से जोड़ना कभी सही नहीं है. चाहे अल्लाहोअकबर के बारे में एक गैर मुसलमान बात करे या उसका उच्चार कर ले या 'ॐ' का एक मुसलमान. इस तरह के जो भी शब्द हैं वे काफी वैज्ञानिक हैं.
ज्ञानार्जन और उसे लोगों तक पहुचाने में धर्म कभी बाधक नहीं होता.
'ॐ' को इस तरह परिभाषित करने के लिए पुनः बधाई.
उम्मीद है ये प्रवाह जारी रहेगा, और वेदांत संबंधी आपकी जानकारी का लाभ हम सभी को मिलाता रहेगा.......
आपकी भाषा ने लगातार पढ़ने को विवश किया ! अति सुंदर ..... बधाई ।
ek baar padhakr koi tippani dena mujhe thik nahin lag rahaa ek baar aur padhunga tab.
लेख अक्षरश सच है..साधुवाद आपको.
वह विचार जो व्यक्ति की धार्मिक पहचान के अनुरूप ॐ की जगह अल्लाह-ओ-अकबर या अल्लाह-ओ-अकबर की जगह ॐ कहने को अधिक वरेण्य मानता है, उससे कहीं अधिक जरूरत इसकी है कि दोनों एकपन को समझा जाए,यह छूट कि आप अल्लाह-ओ-अकबर कह लीजिए,समझ की कमजोरी और उथलेपन की ही निशानी है और दुर्भाग्य से यही अधिक दिखता है। हम तो इस भरोसे के हैं कि किसी मस्जिद या दरगाह के सामने से गुजरते हुए दोनों हाथ जोड़कर मन्नत मांगी जा सकती है, और किसी मंदिर के सामने से गुजरते हुए अपने सलाम से भी वंदना की जा सकती है।
आपने एक बेहद गंभीर और उथल पुथल मचानेवाला प्रसंग छेड़ा है पर अंदाज आपका अपना सानी आप है।
जिस तरह से आपने ॐ के मर्म और अर्थ को हम तक पहुँचाया है, आपको बधाई।
वह विचार जो व्यक्ति की धार्मिक पहचान के अनुरूप ॐ की जगह अल्लाह-ओ-अकबर या अल्लाह-ओ-अकबर की जगह ॐ कहने को अधिक वरेण्य मानता है, उससे कहीं अधिक जरूरत इसकी है कि दोनों एकपन को समझा जाए,यह छूट कि आप अल्लाह-ओ-अकबर कह लीजिए,समझ की कमजोरी और उथलेपन की ही निशानी है और दुर्भाग्य से यही अधिक दिखता है। हम तो इस भरोसे के हैं कि किसी मस्जिद या दरगाह के सामने से गुजरते हुए दोनों हाथ जोड़कर मन्नत मांगी जा सकती है, और किसी मंदिर के सामने से गुजरते हुए अपने सलाम से भी वंदना की जा सकती है।
आपने एक बेहद गंभीर और उथल पुथल मचानेवाला प्रसंग छेड़ा है पर अंदाज आपका अपना सानी आप है।
जिस तरह से आपने ॐ के मर्म और अर्थ को हम तक पहुँचाया है, आपको बधाई।
dada...PD ke toda GUSSA bhi aya aj bhi PKHAND hai.....Parntu kr kiya skte hai SMJH ka dayra ki Chota hai...logo ka ya EK PURE Smuday ka chahe wo HINDU ho YA MUSHLMAN ya koi bhi SMUDAY....
How interesting!
मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए आप सबका बहुत बहुत आभार।
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